जब तक जियूं मैं आक़ा कोई ग़म न पास आए
जो मरूं तो हो लहद पर तेरी रेहमतों के साए
है ख़िज़ा ने डाले डेरे, मुर्जा गए हैं सब गुल
मेरे उजड़े बाग़ में फिरआक़ा बहार आए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
मेरी ज़िन्दगी का मक़सद हो ऐ काश ! इश्क़े-अहमद
मुझे मौत भी जो आए इसी जुस्तजू में आए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
मुझे मौत ज़िन्दगी दे, मुझे ज़िन्दगी मज़ा दे
जो किताबे-ज़िन्दगी पर मोहर अपनी वो लगाए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
तू बसा दे मेरे दिल में हां ! उसी की याद मालिक
वो जो वक़्ते-नज़अ आकर कलमा भी याद दिलाए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
न तो कर सका है कोई, न करेगा प्यार ऐसा
जो लहद में आशिक़ों को दे के थपकियां सुलाए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
वो दिया जो बुझ गया था, वो जो खो गई थी सूज़न
हुवा हर तरफ उजाला जो हुज़ूर मुस्कुराए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
चली आँधिया ग़मो की, गिरी बिजलियाँ दुखों की
ये तेरा करम है आक़ा के कदम न लड़खड़ाए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
जिसे मारा हो ग़मो ने, जिसे घेरा हो दुखों ने
मेरा मशवरा है उस को वो मदीना हो के आए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
दरे-यार पर पड़ा हूँ, इस उसूल पर गिरा हूँ
जो गिरा हुवा हो खुद ही उसे कौन अब गिराए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
मैं ग़ुलामे-पंजतन हूँ, बेसहारा न समझना
मैं हूँ ग़ौस का दीवाना, कोई हाथ तो लगाए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
यहीं आरज़ू दिली है तेरी बज़्म में किसी दिन
ये तेरा उबैद आए, तुझे नात भी सुनाए
रहूं जब तलक मैं ज़िंदा कोई ग़म न पास आए
शायर:
ओवैस रज़ा क़ादरी (उबैद रज़ा)
नातख्वां:
ओवैस रज़ा क़ादरी
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