किस फ़कीरो शाह ने सदक़ा न पाया ग़ौस का
रात दिन बग़दाद से बटता है बाड़ा ग़ौस का
ग़ौसे आज़म क़ुतबे आलम पेशवा-ए-औलिया
दाइमां या रब मेरे हो बोल बाला ग़ौस का
शाने इह़या एसी पाई है कि मुहिय्ये_द्दीं हुए
मुर्दा दिल आएं ज़रा देखें जिलाना ग़ौस का
ताबे नज़्ज़ारा किसे है फिर रियाज़े दहर में
हो अगर बेपर्दा वो रूए दिलआरा ग़ौस का
क़ादिरे मुतलक़ ने उनको अब्दे क़ादिर कर दिया
हो गए वो रब के और है रब तअ़ाला ग़ौस का
मैं गदा वो शाह मैं तालिब मेरे मतलूब वो
मुझसे बद ने मरहबा पाया ये रिश्ता ग़ौस का
मेरे मां बाप और मेरे सारे अज़ीज़ो अहल पर
या ख़ुदा हर दम रहे दामाने वाला ग़ौस का
या ख़ुदा मह़मूद पर मेरे तेरा लुत्फ़ो करम
बख़्श दे उसको मेरे मौला तू सदक़ा ग़ौस का
मेरे अशरफ़ और महबूबो नफीसा को सदा
कब्रों में सबकी अता फरमा उजाला ग़ौस का
ऐ *रजब* बग़दाद वाले देखकर मुझको कहें
देखो देखो हिन्द से आया वो शैदा ग़ौस का
। ✍️ - हुज़ूर मुफ्तिए नानपारा मुफ्ती रजब अली क़ादिरी अलैहिर्रहमा।
पेशकश >>> मुहम्मद सुहैल खरगापुर आशिक़े मुफ्ती-ए-नानपारा
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