कुछ दिल-ए-दाग़दार की बातें
हम तो दिल अपना दे ही बैठे हैं
अब ये क्या इख़्तियार की बातें
मैं भी गुज़रा हूँ दौर-ए-उल्फ़त से
मत सुना मुझ को प्यार की बातें
अहल-ए-दिल ही यहाँ नहीं कोई
क्या करें हाल-ए-ज़ार की बातें
पी के जाम-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ
अल्लाह अल्लाह ! ख़ुमार की बातें
मर न जाना मता'-ए-दुनिया पर
सुन के तू मालदार की बातें
यूँ न होते असीर-ए-ज़िल्लत तुम
सुनते गर होशियार की बातें
हर घड़ी वज्द में रहे अख़्तर
कीजिए उस दयार की बातें
करते हैं चार यार की बातें
फ़ित्ना तफ़्ज़ीलियत का फैला है
चल करें यार-ए-ग़ार की बातें
शायर:
अख़्तर रज़ा ख़ान
Kuch kare Apne Yaar Ki batein.
Kuch Dil e dagdaar ki batein.
Ham to dill apna de hi baithey hain
Abb ye kiya iqteyaar ki batein.
Main bhi guzra hoon daore ulfat se
Mat suna mujh ko piyar ki batein.
Ahele dil hi yahan nahi koi
Kiya karen haal-e-zaar ki batein.
Peke jaam-e-mahabate jaana
Allha allha qumaar ki batein.
Mar na jaana mataa'-e-duniya par
Sun ke tu maaldaar ki batein.
Yun na hote aseer-e-zillat tum
sunte gar hoshiyaar ki batein.
Har ghadi wajd main rahe akhatar
Kijiye us dayaar ki batein.
Mo'tdil Sunniyon ki fitrat hai
Karte hain chaar yaar ki batein.
Fitna tafzeeliyat ka phaila hai
Chal karen yaar-e-Gaar ki batein.
Kuch kare Apne Yaar Ki batein.
Kuch Dil e dagdaar ki batein.