Phir Ke Gali Gali Tabaah Thokare Sab Ki Khayen Kyoon
Dil Ko Jo Akal De Khuda Teri Gali Se Jayen Kyoon
Rukhsate Qaafila Ka Shor Gashse Hame Uthae Kyoon
Sote Hain Unke Sayen Mein Koyi Hamme Jagaaye Kyoon
Yaade Huzoor Ki Qasam Gaflate Aish He Sitam
Khoob Hai Qaide Ghum Mein Hum Koyee Hamme Chhurae Kyoon
Dekh Ke Hazrate Gani Phel Pare Faqeer Bhi
Chaayi He Ab To Chauni Hashr Hi Aana Jae Kyoon
Jaan He Ishqe Mustafa Roz Fizoo Kare Khuda
Jis Ko Ho Dard Ka Mazaa Naaze Dawa Uthae Kyoon
Woh Jo Nathe To Kuch Natha Woh Jo Naho To Kuch Naho
Jaan Hai Woh Jahan Ki, Jaan Hai To Jahaan Hai
Hai To Raza Nira Sitam Jurm Pe Gar Lajaaye Hum
Koyee Bajaaye Soze Gam Saze Tarab Bajaaye Kyoon
============= Hindi Lyrics ===============
फिर के गली गली तबाह ठोकरें सब की खाए क्यूं
दिल को जो अ़क़्ल दे ख़ुदा तेरी गली से जाए क्यूं
रुख़्सत-ए-क़ाफ़िला का शोर ग़श से हमें उठाए क्यूं
सोते हैं उन के साए में कोई हमें जगाए क्यूं
बार न थे ह़बीब को पालते ही ग़रीब को
रोएं जो अब नसीब को चैन कहो गंवाए क्यूं
याद-ए-हुज़ूर की क़सम ग़फ़्लत-ए-ऐ़श है सितम
ख़ूब हैं क़ैद-ए-ग़म में हम कोई हमें छुड़ाए क्यूं
देख के ह़ज़रते ग़नी फैल पड़े फ़क़ीर भी
छाई है अब तो छाउनी ह़श्र ही आ न जाए क्यूं
जान है इ़श्क़-ए-मुस्त़फ़ा रोज़ फ़ुज़ू करे ख़ुदा
जिस को हो दर्द का मज़ा नाज़-ए-दवा उठाए क्यूं
हम तो हैं आप दिल-फ़िगार ग़म में हंसी है ना गवार
छेड़ के गुल को नौ बहार ख़ून हमें रुलाए क्यूं
या तो यूं ही तड़प के जाएं या वोही दाम से छुड़ाएं
मिन्नत-ए-ग़ैर क्यूं उठाएं कोई तरस जताए क्यूं
उन के जलाल का असर दिल से लगाए है क़मर
जो कि हो लोट ज़ख़्म पर दाग़-ए-जिगर मिटाए क्यूं
ख़ुश रहे गुल से अ़न्दलीब ख़ार-ए-ह़रम मुझे नसीब
मेरी बला भी ज़िक्र पर फूल के ख़ार खाए क्यूं
गर्द-ए-मलाल अगर धुले दिल की कली अगर खिले
बर्क़ से आंख क्यूं जले रोने पे मुस्कुराए क्यूं
जाने सफ़र नसीब को किस ने कहा मज़े से सो
खटका अगर सह़र का हो शाम से मौत आए क्यूं
अब तो न रोक ऐ ग़नी अ़ादते सग बिगड़ गई
मेरे करीम पहले ही लुक़्म-ए-तर खिलाए क्यूं
राहे नबी में क्या कमी फ़र्शे बयाज़ दीदा की
चादरे ज़िल है मल्गजी ज़ेरे क़दम बिछाए क्यूं
संगे दरे हुज़ूर से हम को ख़ुदा न सब्र दे
जाना है सर को जा चुके दिल को क़रार आए क्यूं
है तो रज़ा निरा सितम जुर्म पे गर लजाएं हम
कोई बजाए सोज़-ए-ग़म साज़-ए-त़रब बजाए क्यूं
शायर:
इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी