शेर-ए-ख़ुदा के शेर का तेवर नहीं झुका
या'नी कहीं से नाम-ए-बहत्तर नहीं झुका
ताक़त लगा दी पूरी की पूरी यज़ीद ने
लेकिन मेरे हुसैन का इक सर नहीं झुका
ऐ शिम्र ! तू हुसैन को कैसे झुकाएगा
तुझ से तो एक छोटा सा असग़र नहीं झुका
आक़ा ने फिर कहा कि 'अली को बुलाइए
आख़िर किसी से जब दर-ए-ख़ैबर नहीं झुका
दामन मिला है जब से मुझे अहल-ए-बैत का
उस रोज़ से कभी कहीं अज़हर नहीं झुका
शायरः Azhar Farooqi Barelvi
ना'त-ख़्वाँ: Ghulam Gaus gazali
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